Shiv Temple MP: मध्यप्रदेश के आगर मालवा में एक अद्धभुत अति प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका जीर्णोद्धार एक अंग्रेज कर्नल ने करवाया है. स्थानीय लोगों की मानें तो मंदिर इतना चमत्कारी है ये बात अंग्रेजों ने भी स्वीकार की थी. बाबा बैजनाथ के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर से कई चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं. इस मंदिर से एक दावा जुड़ा हुआ है, जिसमें भगवान स्वयं वकील का रुप धारण करके कोर्ट में पहुंचे और जिरह करके केस जीत गए. वहीं दूसरा दावा एक अंग्रेज सेनापति की जान बचाने से जुड़ा हुआ है.
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प्राचीन कथाओं में पुराणों में आपने सुना होगा कि भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए अलग अलग समय मे अलग अलग रूप धरकर धरती पर आते हैं, लेकिन आगर मालवा के इस मंदिर से एक ऐसे दावे जुड़े हुए हैं, जिसमें भगवान शिव स्वयं अपने भक्तों की रक्षा के लिए आए. मंदिर में इस बात के प्रमाण भी मिलते हैं. सावन के महीने में इस प्रसिद्ध मंदिर में बड़ी संख्या में दर्शनार्थी दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
अंग्रेज कर्नल से जुड़ी है कहानी
बैजनाथ महादेव मंदिर से कई चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं, इन्हीं इतिहास में दर्ज घटनाओं में से एक सन 1879 से जुड़ी हुई है. जब भारत में ब्रिटिश शासन था, उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध का संचालन आगर मालवा की ब्रिटिश छावनी के लेफ्टिनेंट कर्नल मार्टिन को सौंपा गया था. कर्नल मार्टिन समय-समय पर युद्ध क्षेत्र से अपनी पत्नी को कुशलता के समाचार भेजते रहते थे. युद्ध लम्बा चला और संदेश आना बंद हो गये, तब उसकी पत्नि लेडी मार्टिन को चिन्ता सताने लगी कि कहीं कुछ अनर्थ न हो गया हो. इसके बाद उसने भगवान बैजनाथ से प्रार्थना की.
लेडी मार्टिन ने की शिव आराधना
लेडी मार्टिन को चिंता सताने लगी कि अफगानी सैनिकों ने मेरे पति को न मार डाला हो. चिन्तातुर लेडी मार्टिन एक दिन घोड़े पर बैठकर घूमने जा रही थी, मार्ग में किसी मंदिर से आती हुई शंख और मंत्रध्वनि ने उसे आकर्षित किया और वह मंदिर में पहुंच गई. बैजनाथ महादेव के इस मंदिर में शिवपूजन कर रहे पंडितों ने उनसे पूछा कि क्या बात है, तो उसने मन की बात कह दी. जिस पर पंडितों ने उससे पूजा कर भगवान भोलेनाथ से कामना करने को कहा. पंडितों की सलाह पर उसने वहां ग्यारह दिन का ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र से लघुरूद्री अनुष्ठान आरम्भ किया तथा प्रतिदिन भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिये प्रार्थना करने लगी. इस दौरान उसने कबूलना करते हुए कहा कि हे भगवान शिव, यदि मेरे पति युद्ध से सकुशल लौट आयें तो मैं बैजनाथ महादेव का शिखर बंद मंदिर बनवाउंगी.
रक्षा करने पहुंचे भगवान शिव
लघु रूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर में आया और लेडी मार्टिन को एक लिफाफा दिया. उसने घबराते- घबराते लिफाफा खोला और पढ़ने लगी. पत्र उसके पति ने लिखा था. पत्र में लिखा था कि हम युद्धरत थे और तुम तक संदेश भी भेजते रहे, लेकिन अचानक हमें चारों ओर से पठानी सेना ने घेर लिया था ब्रिटिश सेना कट मरती और मैं भी मर जाता. ऐसी विकट परिस्थिति में हम घिर गये थे कि प्राण बचाकर भागना भी अत्यधिक कठिन था, इतने में सहसा मैंने देखा कि युद्ध भूमि में भारत के कोई एक योगी, जिनकी बड़ी लम्बी जटाएं हैं, हाथ में तीन नोंक वाला एक हथियार (त्रिशूल) है और वे बड़े तेजस्वी और बलवान पुरूष अपना त्रिशूल घुमा रहे हैं. उनका त्रिशूल इतनी तीव्र गति से घूम रहा था कि पठान सैनिक उन्हें देखकर ही भागने लगे, उनकी कृपा से घेरे से निकलकर पठानों पर वार करने का हमें मौका मिल गया और हमारी हार की घड़ियां एकाएक जीत में बदल गईं. यह सब भारत के उन त्रिशूलधारी योगी के कारण ही संभव हुआ. उनके महातेजस्वी व्यक्तित्व के प्रभाव से देखते ही देखते अफगानिस्तान की पठानी सेना भाग खड़ी हुई और वे परम योगी मुझे हिम्मत देते हुए कहने लगे घबराओ नहीं. मैं भगवान शिव हूं तथा तुम्हारी पत्नी की शिवपूजा से प्रसन्न होकर मैं तुम्हारी रक्षा करने आया हूं.
अंग्रेज दंपती ने करवाया जीर्णोद्धार
युद्ध से लौटकर मार्टिन दंपति दोनों ही नियमित रूप से बैजनाथ महादेव मंदिर में आकर पूजा-अर्चना करने लगे. अपनी पत्नी की इच्छा पर कर्नल मार्टिन ने सन् 1883 में बैजनाथ महादेव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया, जिसका शिलालेख आज भी आगर-मालवा के इस मंदिर में लगा है. पूरे भारत भर में अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह एक मात्र हिन्दू मंदिर है. इसी तरह कई प्राचीन चमत्कारिक घटनाएं आज भी भक्तों को बरबस ही मंदिर की ओर खींच लेती हैं.
वकील बनकर पहुंचे भगवान शिव
दूसरी चमत्कारिक कहानी बाबा बैजनाथ के अनन्य भक्त रहे आगर निवासी स्व. जयनारायण बापजी वकील साहब से जुड़ी हुई है. एक प्रचलित कथा के अनुसार वकील जयनारायण बापजी आगर कोर्ट में वकालात करते थे और नियमित रूप से महादेव दर्शन के लिए इसी बैजनाथ मंदिर में जाते थे और ध्यान लगाते थे. ऐसे ही एक बार वे महादेव के ध्यान में इतने मग्न हो गए कि अपने पक्षकार की पैरवी के लिए न्यायालय में समय पर नहीं पहुंच पाए, लेकिन जब ध्यान भंग होने के पश्चात् न्यायालय पहुंचे तो वहां पर उन्हें मालूम हुआ कि वे अपने पक्षकार की पैरवी कर चुके हैं और कैस जीत चुके हैं. इस चमत्कारिक घटनाक्रम की जीवंतता के चलते संगमरमर से निर्मित बापजी की आदमकद ध्यानमग्न प्रतिमा मंदिर के सभा मंडप में भी स्थापित की गई है.
1563 में हुई थी स्थापना
बैजनाथ महादेव मंदिर की स्थापना के बारे में स्पष्ट तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन बताया जाता है कि यहां पहले कभी बेटखेड़ा नामक एक गांव पहाडी पर दक्षिण पाश्र्व में बसा हुआ था. उस गांव में मोड़ जाति के वैश्यों की बस्ती हुआ करती थी. मोड़ वैश्यों ने बैजनाथ महादेव के मंदिर को सन 1563 ई. में स्थापित किया था. पहले यह मंदिर एक मठ के रूप होकर कम ऊंचाई लिए हुए था, और मंदिर की दिवारें ज्वालामुखीय पत्थरों से बनी मोटी-मोटी हुआ करती थीं. अंग्रेज कर्नल के द्वारा जीर्णोद्धार के बाद इसमें समय-समय पर भक्त मंडल और प्रशासन द्वारा सुधार कार्य किये जाते रहे हैं. सावन के आखिरी सोमवार को बाबा बैजनाथ की विशाल शाही सवारी भी निकाली जाती है, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं.
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