MP News: अजब एमपी में गजब मामला सामने आया है. इंदौर (Indore) के महू में रहने वाले धर्मेंद्र शुक्ला ने कोरोना (Corona) काल में भ्रष्टाचार (corruption) की जानकारी की मंशा से आरटीआई (RTI) दाखिल की थी. हालांकि उन्हें आरटीआई के जरिए जानकारी तो मिली, लेकिन इतनी ज्यादा मिलेगी यह उन्हें उम्मीद नहीं थी. दरअसल इस शख्स को आरटीआई का जवाब 48000 पन्नों में मिला है.
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आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि संयुक्त संचालक के यहां प्रथम अपील लगाई गई थी, जहां उन्हें पूरी जानकारी देने के निर्देश हुए. जिसके बाद उन्हें 48 से 50 हजार पेपरों में जानकारी दी गई. इससे उन्हें करीब 80 हजार रुपये का नुकसान हुआ. आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने प्रशासन पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं.
RTI के पन्नों से भर गया घर
किसी आरटीआई (RTI) की जानकारी लगभग कितने पन्नों में दी जा सकती है, शायद 100, 500 या 1000 पन्नों में. लेकिन इंदौर के महू के रहने वाले एक शख्स के द्वारा लगाई गई आरटीआई का जवाब 48 हजार पन्नो में मिला. जो कोरोना काल (Covid) में जिला प्रशासन द्वारा की गई खरीदारी, जिसमें वेंटीलेटर मास्क दवाइयां और स्वास्थ्य संबंधित अन्य चीजों की जानकारी के लिए लगाई गई थी. आरटीआई का जवाब लेने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने याचिकाकर्ता को लोडिंग रिक्शा लेकर बुलाया था. याचिकाकर्ता सफारी गाड़ी से आरटीआई की जानकारी लेने पहुंचे, जिसके बाद पूरी गाड़ी आरटीआई की जानकारी से भर गई और नौबत यहां तक आ गई कि आईटीआई के पेपर घर में रखने की जगह तक नहीं थी.
लगाए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेश शुक्ला ने कहा कि इस तरह का यह पहला मामला देश में हो सकता है, जहां 50000 के आसपास की जानकारी किसी आरटीआई कार्यकर्ता को उपलब्ध कराई गई है. उन्होंने कहा कि इस जानकारी को पढ़ने में 2 से 3 महीने लग जाएंगे, जो भी भ्रष्टाचार हुआ है इस को उजागर करने में. वहीं आरटीआई कार्यकर्ता धर्मेंद्र शुक्ला ने कहा कि पहली बात तो यह कि स्वास्थ विभाग में जानकारी नहीं देने का इरादा था. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी मंशा जाबाब देने की नहीं थी. बहुत बड़ा घोटाला किया गया है करीब 50 से 60 करोड़ का.
80 हजार खर्च करके मिली RTI
धर्मेंद्र को RTI की कॉपी लेने के लिए करीब 80 हजार रुपये खर्च करने पड़े. धर्मेंद्र शुक्ला के मुताबिक आरटीआई में करीब 50000 के आसपास पेज हैं जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए हैं. उन्होंने कहा, ‘आम आदमी यदि जानकारी के लिए आवेदन लगाता तो उसे 70 से 80 हजार रुपये खर्च करने पड़ते, जिससे वह जानकारी लेने से ही इनकार कर देता, क्योंकि जानकारी देने से भ्रष्टाचार उजागर हो जाता है. लगभग 80000 का नुकसान सरकार का स्वास्थ्य विभाग ने किया है और जो ₹2 के हिसाब से फोटो कॉपी स्वास्थ विभाग द्वारा की गई है उससे और भी नुकसान सरकार को हुआ है.
भ्रष्टाचार की जानकारी जुटा रहे हैं
धर्मेंद्र शुक्ला ने बताया कि सूचना के अधिकार का नियम यह है कि 30 दिन के भीतर आपको जानकारी उपलब्ध कराना है और यदि 30 दिन के भीतर कोई जानकारी नहीं देता है तो इसके ऊपर अधिकारी आपको जानकारी देना होती है, नहीं तो प्रथम अपील लगाना होती है इनके द्वारा 32 दिन निकल गए उसके बाद प्रथम अपील लगाई गई जहां वहां से आरटीआई की जानकारी देने के आदेश हुए और स्वास्थ्य विभाग से लगभग 15 से 20 दिन के बाद जानकारी उपलब्ध कराई गई, जिसमें उसमें क्या-क्या भ्रष्टाचार हुआ है उसकी जानकारी जुटाई जा रही है.
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