रीवा महाराज का क्या है श्रीराम कनेक्शन, यहां राम की जगह क्यों मानते हैं लक्ष्मण को अपना राजा

अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ समूचे देश में खुशी का माहौल है. ऐसे में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की चर्चा भी होना लाजमी है. हम भगवान श्रीराम को रघुकुल के राजा के रूप में मानते है लेकिन विंध्य में राम को वनवासी राम के रूप में माना जाता है.

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Maharaja Pushpraj Singh: अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ समूचे देश में खुशी का माहौल है. ऐसे में श्रीराम के अनुज लक्ष्मण की चर्चा भी होना लाजमी है. हम भगवान श्रीराम को रघुकुल के राजा के रूप में मानते है लेकिन विंध्य में राम को वनवासी राम के रूप में माना जाता है. श्रीराम ने यहां का पूरा इलाका लक्ष्मण को सौंपा था. रीवा रियासत ने लक्ष्मण को अपना राजा मानते हुए अनुसरण किया और श्रीराम को राजगद्दी में बैठाया और खुद सेवक बने. बघेल रियासत देश की ऐसी रियासत है जहा महाराजा राजगद्दी पर नही बैठते. यहां गद्दी में राजधिराज श्रीराम बैठते हैं. 500 वर्षो से इस परंपरा का निर्वाह अनवरत किया जा रहा है.

कहते है चित्रकूट ना होता तो भगवान राम ना होते. वनवास काल में भगवान श्रीराम ने सबसे ज्यादा वक्त बिताया था. यहां ही उन्होंने असुरों का विनाश करने का संकल्प लिया था. भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को जमुना पार से लेकर दक्षिण का पूरा इलाका सौंपा था. विंध्य में घने जंगलों के बीच बांधवगढ़ मौजूद है. बांधवगढ़ में वनवासी राम की बड़ी आस्था है.

इसी मान्यता के चलते बघेल रियासत में राजाधिराज को गद्दी दी गई और खुद उसके सेवक बने. देश में रीवा रियासत एक ऐसी रियासत है जहा महाराज गद्दी पर नही बैठते बल्कि राजाधिराज के विग्रह को बैठाया है. 500 वर्षो के इतिहास में पहली बार 22 जनवरी को राजाधिराज नगर भ्रमण के लिए निकाले जाएंगे.

क्या है रीवा रियासत का श्रीराम कनेक्शन

राजा- महाराजाओं के शाही ठाट-बाट में राजगद्दी का अपना विशेष महत्व होता था. जिसकी गद्दी जितनी बडी उसका वैभव उतरना बडा. ऐसे में भला कौन राजा इसमें बैठना नही चाहेगा. भले ही रियासते ख़त्म हो गई हों लेकिन रीवा में देश की एक ऐसी रियासत जहां राजा नहीं बैठते राजगद्दी पर. बघेल रियासत के 500 वर्षो के वैभवशाली इतिहास में महाराज ने राजाधिराज भगवान श्रीराम को राजगद्दी पर बैठाया है. बघेल रियासत के पितृ पुरुष व्याघ्रदेव उर्फ बाघ देव गुजरात से चलकर विंध्य आए. उन्हें यह जानकारी दी की,यह लक्ष्मण का इलाका है.

चित्रकूट के आसपास इन्होंने अपना ठिकाना बनाया और राज्य का विस्तार करते हुए बांधवगढ़ तक पहुंच गए. बघेल रियासत ने लक्ष्मण को आराध्य माना, उनकी पूजा की और राजाधिराज को राजगद्दी पर बैठाया. जबकि सेवक बनकर परंपरा का निर्वाह किया. बांधवेश महाराजा पुष्पराज सिंह ने बताया की रियासत की 37 वी पीढ़ी भी इस परंपरा का निर्वाह करती आ रही है. अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ ही रीवा रियासत में खुशी मनाई जा रही है. पहली बार राजाधिराज को दूसरी बार नगर भ्रमण के लिए निकाला जा रहा है.

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