Jyotiraditya Scindia: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर अब तक आधा दर्जन सर्वे और ओपनियिन पोल आ चुके हैं. लगभग सभी सर्वे में ग्वालियर-चंबल रीजन में बीजेपी को बुरी तरह से हारते हुए दिखाया गया है. लेटेस्ट ओपिनियन पोल जी न्यूज-सी फॉर सर्वे का सामने आया है. इसमें भी ग्वालियर-चंबल रीजन में बीजेपी के खाते में बहुत कम सीटें आती बताई हैं.
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इस सर्वे के अनुसार ग्वालियर चंबल रीजन में कांग्रेस के खाते में 24 से 26 और बीजेपी के खाते में सिर्फ 8 से 10 सीटें आती हुई बताई गई हैं. अन्य के खाते में 0 से 1 सीट आने की संभावना दिखाई गई है. हालांकि ये सर्वे है, असली परिणाम तो 3 दिसंबर को ही सामने आएंगे. लेकिन जी न्यूज-सी फॉर सर्वे के इस ओपिनियन पोल के सामने आने के बाद अब सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर हर सर्वे में ग्वालियर-चंबल रीजन में बीजेपी को कम सीटें मिलने की संभावनाएं क्यों जताई जा रही हैं.
बीजेपी को सिंधिया से फायदे की उम्मीद
आखिर ग्वालियर-चंबल रीजन के लोगों की नब्ज बीजेपी क्यों नहीं पकड़ पा रही है, जबकि ये इलाका कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले और उनकी सरकार बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया का है और बीजेपी उन्हें लेकर आशान्वित है कि उनके होने से बीजेपी को ग्वालियर-चंबल रीजन में फायदा मिलेगा लेकिन अब तक किसी भी सर्वे में ऐसा होता हुआ नहीं दिखा है बल्कि हर सर्वे ने ग्वालियर-चंबल रीजन में बीजेपी को बड़ा नुकसान होने का अंदेशा जताया है.
वोट प्रतिशत के मामले में भी कांग्रेस को बढ़त बताई गई है. ग्वालियर-चंबल रीजन में कांग्रेस को 49 प्रतिशत, बीजेपी को 42 प्रतिशत, अन्य को 09 प्रतिशत वोट शेयर मिलने की संभावना जताई गई है.
क्या सिंधिया से बीजेपी को फायदा नहीं मिल रहा?
ग्वालियर-चंबल की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जगमोहन द्विवेदी बताते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने से सब कुछ तितर-बितर हो गया है. ग्वालियर-चंबल की 34 सीटों में से अधिकतर पर सिंधिया समर्थक मंत्री-विधायकों को टिकट मिल गया है. प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, मोहन सिंह राठौड़, महेंद्र सिंह सिसोदिया सहित तमाम सिंधिया समर्थकों को बीजेपी ने टिकट दे दिया है. इससे बीजेपी का जो मूल कैडर है, वह नाराज चल रहा है. नाराजगी दूर करने काफी प्रयास बीते 6 महीने में हुए हैं.
खुद पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह तक ग्वालियर आकर जनसभा कर चुके हैं और स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से मिल चुके हैं लेकिन तब भी पार्टी के अंदर हर सीट पर फूट के आसार हैं. वहीं ग्राउंड पर जनता के बीच बीजेपी और सिंधिया अपने इस मिलन को शायद अब तक जस्टिफाई नहीं कर पाए हैं. बुनियादी मुद्दे अपनी जगह हैं, सड़क, बेरोजगारी, महंगी बिजली, बढ़ती महंगाई इन सबको लेकर लोग परेशान हैं.
जगमोहन द्विवेदी के अनुसार सिंधिया की मौजूदगी ग्वालियर-चंबल रीजन में आने-जाने की बनी रहती है. सिंधिया कोई ग्वालियर में रुकते नहीं है न ही कोई जन दरबार जैसा कुछ लगाते हैं, जिससे आम लोग उनके पास आकर उनसे बात कर सकें या अपनी परेशानी सीधे उन तक पहुंचा सकें. सिंधिया खुद को आम दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन उनके आसपास उनके समर्थकों ने जो आभा मंडल तैयार करके रखा है, वह आज भी महाराज का ही है.
द्विवेदी बताते हैं कि ऐसे में लग रहा है कि कहीं न कहीं जनता और सिंधिया के बीच नजदीकी नहीं बन पा रही है और यही कारण है कि अब तक 6 से ज्यादा ओपिनियन पोल सामने आ गए लेकिन एक में भी सिंधिया की वजह से ग्वालियर-चंबल रीजन में बीजेपी की सीटें बढ़ती हुई नहीं दिख रही हैं. अब जनता क्या सोचकर बैठी है, ये तो 17 नवंबर को ही पता चलेगा जब लोग वोट डालेंगे. असली परिणाम के लिए सभी को 3 दिसंबर तक का इंतजार करना चाहिए, जब रिजल्ट एनाउंस होंगे.
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