BJP की बंपर जीत के बाद भी क्यों हारे शिवराज सरकार के ये 13 मंत्री, कहां हुई चूक?

शिवराज सरकार के 13 मंत्री बीजेपी की लहर के बावजूद चुनाव हार गए तो वहीं एक केंद्रीय मंत्री और एक सांसद भी अपना ये चुनाव हार गए.

MP BJP MP Election 2023 MP Election Result 2023 Shivraj Government Narottam Mishra BJP Big Leader lost the election.

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MP Election Result 2023: मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की आंधी ही नहीं बल्कि सुनामी चली. इस सुनामी की चपेट में आकर कांग्रेस पूरी तरह से मध्यप्रदेश में साफ हो गई. लेकिन बीजेपी के अंदर जहां कई नेताओं का इसका फायदा हुआ तो कुछ ऐसे भी नेता रहे जो शिवराज सरकार में और पीएम मोदी की कैबिनेट में लंबे समय से मंत्री रहे लेकिन जनता ने बीजेपी की प्रचंड लहर में भी उनको स्वीकार नहीं किया और इन मंत्रियों के जीवन की सबसे बड़ी हार जनता ने उनको दे दी. शिवराज सरकार के 13 मंत्री बीजेपी की लहर के बावजूद चुनाव हार गए तो वहीं एक केंद्रीय मंत्री और एक सांसद भी अपना ये चुनाव हार गए.

पहले जान लीजिए, बीजेपी के कौन से दिग्गज मंत्री हारे चुनाव

बीजेपी में शिवराज सरकार में ये वो मंत्री हैं, जो अपना चुनाव हार गए.

1 – दतिया से डॉ. नरोत्‍तम मिश्रा
2 – हरदा से कमल पटेल
3 – बमोरी से महेंद्र सिंह सिसौदिया
4 – बड़वानी से प्रेम सिंह पटेल
5 – अटेर से अरविंद सिंह भदौरिया
6 – बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव
7 – बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन
8 – ग्वालियर ग्रामीण से भारत सिंह कुशवाह
9 – अमरपाटन से रामखेलावन पटेल
10 – पारसवाड़ा से राम किशारे नानो कांवरे
11 – पोहरी से सुरेश धाकड़
12 – खरगापुर से राहुल सिंह लोधी
13- प्रद्युम्न लोधी

केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और सांसद गणेश सिंह भी हारे

इसके साथ सतना से सांसद गणेश सिंह भी कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ कुशवाह से चार हजार से अधिक वोटों से ये चुनाव हार गए और सबसे ज्यादा चौंकाया केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते की हार ने. निवास सीट पर फग्गन सिंह कुलस्ते को कांग्रेस प्रत्याशी चैन सिंह वरकड़े ने लगभग दस हजार वोटों से ये चुनाव हरा दिया है.

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अब जानें इन मंत्रियों से क्या हो गई चूक

नरोत्तम मिश्रा- दतिया में लंबे समय से चुनाव जीत रहे थे. लेकिन दतिया के लोकल नहीं थे. डबरा सीट छोड़कर 2008 से दतिया सीट पर चुनाव लड़ना शुरू किया था लेकिन जीतते रहे लेकिन हर जीत में पेंच फंसाया कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र भारती ने और इस बार राजेंद्र भारती का निशाना आखिरकार लग ही गया और इस बार नरोत्तम ये चुनाव हार गए. नरोत्तम का लगातार विवादों में रहना, हर घटना को धार्मिक रंग देना, स्थानीय विकास कार्यों को लेकर लोगों की नाराजगी को दूर ना कर पाना, दतिया में सहज उपलब्ध न होने जैसी बहुत सी ऐसी बातें थीं, जो उनकी हार की वजह बने हैं.

कमल पटेल– जो हाल नरोत्तम मिश्रा का दतिया सीट पर हो गया था, वहीं हाल शिवराज सरकार के कृषि मंत्री कमल पटेल का हरदा सीट पर हुआ था. उन पर भू माफियाओं को संरक्षण देने, जमीनों पर कब्जा करने, पावर का मिसयूज करने जैसे आरोप कांग्रेस पार्टी द्वारा लगाए गए. उनके बेटे का सोशल मीडिया पर लोगों को धमकी देने का वायरल मैसेज भी लोगों को ठीक नहीं लगा, जिसके बाद बेटे पर एफआईआर भी हुई. कमल पटेल पूरी तरह से एंटी इन्कम्बेंसी का शिकार हो गए.

अरविंद भदौरिया-  चंबल के भिंड जिले की चर्चित अटेर सीट पर लंबे समय से अरविंद भदौरिया की अदावत कटारे परिवार से चली आ रही थी. पहले स्व. सत्यदेव कटारे जो कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता था और नेता प्रतिपक्ष भी थे, उनके सामने चुनावी अदावत चलती रही और अब उनके बेटे हेमंत कटारे से उनका राजनीतिक द्वंद चल रहा है. चुनाव को लेकर अटेर में बहुत कुछ ऐसा हुआ जिसे ठीक नहीं कहा जा सकता. यहां जातिगत समीकरणों ने भी अरविंद भदौरिया के खिलाफ माहौल बना दिया था, जिसके बाद उनको बड़ी हार हेमंत कटारे से मिली.

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राजवर्धन सिंह दत्तीगांव- इनके खिलाफ भी क्षेत्र मे एंटी इन्कम्बेंसी काम कर गई. एक महिला का वीडियो जमकर कुछ समय पहले वायरल हुआ था, जिसमें महिला ने खुद को राजवर्धन सिंह दत्तीगांव का करीबी बताया था और उनके बारे में अपशब्द भी बोले और उनके नाम की धमकी तक दी. ये सब देखकर क्षेत्र की जनता में राजवर्धन सिंह दत्तीगांव की छवि को काफी नुकसान पहुंच चुका था. सिंधिया गुट से आने वाले राजवर्धन सिंह दत्तीगांव अपने खिलाफ फैले अंडर करंट को सही समय पर पहचान नहीं सके और जिसका खामियाजा उनको हार के रूप में झेलना पड़ा है.

गौरीशंकर बिसेन– बालाघाट में गौरीशंकर बिसेन ने माहौल तो खूब बनाया, पहले बेटी को टिकट दिलाया और फिर उसे बीमार बताकर खुद ही नामांकन फॉर्म भर दिया. गौरीशंकर कई बार अपनी गतिविधियों से बीजेपी को ही परेशान करने में लगे थे. चूंकि ये महाकौशल का इलाका है और कमलनाथ का प्रभाव बालाघाट तक है और जिस कारण भी गौरीशंकर को हार का सामना करना पड़ा है.

महेंद्र सिंह सिसाेदिया- सिंधिया गुट के कट्‌टर समर्थक मंत्री महेंद्र सिंह सिसाेदिया से बमोरी विधानसभा क्षेत्र के लोग विकास कार्यों के न होने से नाराज थे. महेंद्र सिंह सिसाेदिया दावा करते थे कि उन्होंने क्षेत्र में 20 हजार करोड़ रुपए के काम कराए थे लेकिन जब चुनावी दौरे पर उनकी पत्नी लोगों के बीच पहुंची तो नाराज लोगों ने उनकी पत्नी को बैठने तक नहीं दिया और कीचड़ और धूल से सनी सड़क पर पैदल चलने को मजबूर किया और पूछा कि कहां हुआ है 20 हजार करोड़ रुपए का विकास कार्य.

इस भारी विरोध के कारण ही महेंद्र सिंह सिसाेदिया को बड़ी हार मिली है. वहीं एक अन्य कारण उनका लगातार स्थानीय सांसद डॉ. केपी यादव से विवादों में उलझना भी रहा है. दोनों के बीच राजनीतिक अदावत लंबे समय से है.

भारत सिंह कुशवाहा– केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के कोटे से बीजेपी लगातार उनको टिकट दे रही है और चुनाव जीतने में मदद भी कर रही थी लेकिन इस बार ग्वालियर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में कुछ विकास कार्यों के अधूरे रह जाने की नाराजगी नारायण सिंह कुशवाहा को झेलना पड़ गई तो वहीं यहां पर कांग्रेस द्वारा चले गए गुर्जर-कुशवाहा जातिगत समीकरणों को साध लेने की वजह से भी भारत सिंह कुशवाहा की यहां पर हार हो गई.

सुरेश धाकड़- सिंधिया समर्थक मंत्री सुरेश धाकड़ का क्षेत्र में भारी विरोध था. विकास कार्यों के अधूरे रह जाने से लोग इनसे नाराज थे और इनकी मौजूदग सही समय पर लोगों के बीच न होने के भी आरोप इन पर लगे थे. इनकी हालत तो इतनी पतली हो गई थी कि चुनाव प्रचार के दौरान ये वोटों की भीख तक मांगने को मजबूर हो गए थे और लोगों के सामने रोने तक लगे थे लेकिन इनके आंसूओं पर पोहरी क्षेत्र की जनता ने कोई तव्वजो नहीं दी और इनको भी बुरी तरह से हारना पड़ गया.

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राहुल सिंह लोधी- राहुल सिंह लोधी की विधानसभा सदस्यता शून्य करने का फैसला कोर्ट ने चंदा सिंह गौर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. चंदा सिंह गौर कांग्रेस नेता हैं. 2013 में खरगापुर से विधायक रही हैं. 2013 के विधानसभा चुनाव में चंदा सिंह गौर ने बीजेपी के राहुल सिंह लोधी को हराया था. इस चुनाव में चंदा सिंह को 59,771 वोट मिले थे जबकि बीजेपी उम्मीदवार राहुल सिंह लोधी को 54,094 वोट मिले थे. राहुल लोधी पहले से ही चंदा सिंह के सामने कमजोर नजर आ रहे थे.

फग्गन सिंह कुलस्ते- केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते बड़ा आदिवासी चेहरा माने जा रहे थे लेकिन उनकी चुनाव कैपेनिंग के दौरान ही उनके खिलाफ निवास क्षेत्र में विरोध सामने आने लगा था. उनकी जनसभाओं तक में लोग नहीं आ रहे थे और तभी से लग गया था कि फग्गन सिंह कुलस्ते का चुनाव फंस सकता है और ऐसा ही हुआ. बड़ी हार कुलस्ते की हुई है.

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