MP Election 2023: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के कई दिग्गज पशोपेश में हैं. वोटिंग में चंद दिन शेष हैं लेकिन कई बीजेपी दिग्गज अपनी विधानसभा सीटों से हिल भी नहीं पा रहे हैं, जबकि उनके कंधों पर खुद की सीट के साथ शेष प्रदेश की सीटों पर भी प्रचार करने की जिम्मेदारी है, लेकिन उनकी खुद की विधानसभा क्षेत्र में मामला टाइट चल रहा है. ऐसे में MP Tak ने वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई से जानने की कोशिश की, कौन-कौन सी सीटों पर बीजेपी के दिग्गज फंसे हुए हैं.
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रशीद किदवई बताते हैं कि जब अमित शाह ने कुछ महीने पहले मध्यप्रदेश में चुनाव की कमान संभाली थी, तब उनके पास जो रिपोर्ट निकलकर सामने आई, तो वे देखकर हैरान थे. यहां पर सब कुछ खोखला था. उसके बाद अमित शाह ने एक-एक सीट पर रणनीति तैयार करना शुरू किया.
लेकिन केंद्रीय मंत्री और सांसदों को उतारकर बीजेपी ने बड़ी रिस्क ले ली है. यदि ये लोग चुनाव हारेंगे तो इनका कैरियर भी भविष्य में फंस सकता है और अगर जीते तो सभी तो मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे. बनेगा कोई एक ही. लेकिन वाे कौन होगा और इनमें से भी होगा या नहीं, ये सब तो परिणाम ही बताएंगे.
‘इसलिए भाजपा को स्कीम लेकर आना पड़ा’
रशीद किदवई बताते हैं कि भाजपा ने जिस तरह से सर्वे कराकर टिकट बांटे, ये बताता है कि भाजपा की स्थिति कुछ महीने पहले तक बहुत खराब थी. राज्य में चुनाव अमूमन सीएम के चेहरे के इर्द-गिर्द लड़ा जाता है. मुझे लगता है कि भाजपा ने जब यहां का आंकलन किया है. जब समझ आया कि जमीनी स्थिति अच्छी नहीं है. तब उनको एक हजार, दो हजार रुपए महीने देने वाली स्कीम लेकर आना पड़ा.
किन सीटों पर टाइट फाइट, जानें राशिद किदवई से
दिमनी विधानसभा सीट– नरेंद्र सिंह तोमर अगर यहां चुनाव हार जाते हैं. तो ये आ बैल मुझे मार वाली बात हो जाएगी. जितना छोटा चुनाव होता है, उतना ही मुश्किल होता है उसे जीतना. ग्वालियर-चंबल में जातीय संघर्ष का लंबा इतिहास है. बीजेपी ने ये बड़ी गलती की है. इसके कारण लोकसभा चुनाव को लेकर भी दिक्कत हो जाएगी. दिमनी वाली सीट फंसी हुई है.
इंदौर 1 विधानसभा सीट– कैलाश विजयवर्गीय को बीजेपी ने यहां उम्मीदवार बनाया है. यहां तो दिलचस्प चुनाव है. कैलाश विजयवर्गीय यहां पर बहुत अनमने ढंग से आए. कई तरह के बयान दिए कि वो चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे. लगता है कि कैलाश जी को धक्का देकर चुनाव लड़ने भेजा गया है. कैलाश जी जरूर यहां खुद के लिए फंसे हुए हैं.
सीधी विधानसभा सीट- सिटिंग विधायक केदारनाथ शुक्ला का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को टिकट दे दिया. सीधी में ही दशमत रावत के साथ पेशाब कांड हुआ था. आरोप लोकल विधायक के प्रतिनिधि पर लगा था. केदारनाथ शुक्ला को टिकट नहीं मिला तो अब वे बागी हो गए हैं. निर्दलीय लड़ रहे हैं. रीती पाठक तो नरेंद्र मोदी की लहर में चुनाव जीतकर सांसद बनी थीं. अब स्थिति एकदम उलट है. पेशाब कांड से हालत और भी खराब हुई है.
निवास विधानसभा सीट– फग्गन सिंह कुलस्ते को लेकर एक कैलकुलेटेड रिस्क लिया है बीजेपी ने. फग्गन सिंह कुलस्ते को लड़ाकर भाजपा ने खोई जमीन को पाने की कोशिश की है. यहां बीजेपी को अन्य सीटों की तुलना में फायदा हो सकता है.
सतना विधानसभा सीट- गणेश सिंह को मोदी का सांसद कहा जाता है कि मोदी लहर में सांसद बने थे. गणेश सिंह के साथ में वही समस्या रही कि तैयारी का वक्त कम मिला. विंध्य में बीजेपी को चौकाने वाले परिणाम देखने को मिल सकते हैं.
जबलपुर विधानसभा सीट- राकेश सिंह का मुकाबला पूर्व वित्त मंत्री तरुण भनोत से है. तरुण की ग्राउंड कनेक्टिविटी बहुत अच्छी है. यहां भी सीट फंसी हुई है. राकेश सिंह चुनाव हारे तो आगे भविष्य की राह बीजेपी में मुश्किल हो जाएगी.
नरसिंहपुर विधानसभा सीट- यहां से प्रहलाद पटेल चुनावी मैदान में हैं लेकिन उनका पूरा चुनाव उनके भाई देख रहे हैं. जालम सिंह ने खुद मैदान से हटकर यह मौका प्रहलाइ पटेल को दिया है. प्रहलाद पटेल को सीएम के उम्मीदवार के तौर पर भी देखा गया था. सीएम फेस के जितने भी उम्मीदवार हैं, उनमें सबसे सशक्त प्रहलाद पटेल हैं. स्थानीय जनता को अहसास है कि ये जीते तो जरूर कुछ बन सकते हैं. लेकिन लगता है कि प्रहलाद पटेल चुनाव जीत सकते हैं.
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