mp politics: पूर्व दस्यु मलखान सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इससे पहले वे बीजेपी में भी रह चुके हैं. लेकिन मलखान सिंह नेता बनने से पहले चंबल के मशहूर बागी हुआ करते थे. ऐसे बागी जिनकी तूती पूरे चंबल के बीहड़ में बोला करती थी. ये अपने उसूलों के लिए जाने जाते थे, जिनकी वजह से चंबल के जिलों में रेप की घटनाएं लगभग खत्म ही हो गई थी और एक ऐसा बागी जिसकी तलाश में तीन राज्यों की पुलिस बीहड़ों की खाक छानती रही लेकिन कभी पुलिस के हाथ मलखान सिंह तक नहीं पहुंच सके.
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मलखान सिंह का जन्म भिंड के बिलाव गांव में हुआ था. बिलाव गांव में मलखान सिंह पले बढ़े और खेले कूदे थे. इसी गांव के सरपंच कैलाश नारायण पंडित द्वारा गांव में स्थित एक मंदिर की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था. किशोर उम्र में ही मलखान सिंह इस बात को भली-भांति समझ गए थे कि गांव के सरपंच की नजर मंदिर की जमीन पर है. उन्होंने मंदिर की जमीन पर हुए अतिक्रमण का विरोध करना शुरू कर दिया.
महज 17 साल की उम्र में उन्होंने गांव के लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया कि मंदिर की जमीन पर जबरिया कब्जा किया जा रहा है जो कि गलत है. जब इस बात की भनक कैलाश नारायण पंडित के कानों तक पहुंची तो उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए मलखान सिंह को हवालात की हवा खिलवाई और पुलिस के हाथों पिटाई भी लगवा दी लेकिन पुलिस की पिटाई से भी मलखान का हौसला कम नहीं हुआ. थाने से लौटने के बाद एक बार फिर से मलखान सिंह ने कैलाश नारायण पंडित का विरोध करना शुरू कर दिया.
डकैत बनने से पहले से की थी राजनीति में आने की कोशिश
मलखान समझ गया था की बाहुबली कैलाश नारायण के सामने वह नहीं टिक पाएगा. इसलिए उसने पंचायत चुनाव में भागीदारी करने का निर्णय लिया. मलखान सिंह के पंचायत चुनाव में दिलचस्पी की खबर जब कैलाश नारायण पंडित को लगी तो कैलाश नारायण पंडित ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रिश्तो का इस्तेमाल करते हुए पुलिस तक इस बात की सूचना पहुंचाई कि मलखान सिंह डकैतों का मुखबिर है और गांव में रहकर डकैतों के लिए मुखबरी करता है.
ऐसे पहुंचा बीहड़ में मलखान
सूचना मिलने पर पुलिस ने मलखान सिंह को धर लिया और कुछ दिन मलखान सिंह को जेल में रहना पड़ा. मलखान सिंह जब जेल से बाहर आया उस दौरान कैलाश नारायण पंडित के एक रिश्तेदार की हत्या हो गई. इस हत्या के आरोप में मलखान सिंह का नाम भी शामिल कर दिया गया और मलखान सिंह को जेल हो गई. जेल से जमानत मिलने के बाद जब मलखान सिंह बाहर आया तो समझ गया था कि कैलाश नारायण पंडित का सामना करना इतना आसान नहीं है. इसके बाद मलखान सिंह ने अपना घर और गांव छोड़ दिया और कुछ रिश्तेदारों के साथ मिलकर बीहड़ का रास्ता अख्तियार कर लिया.
पैसों और हथियारों के लिए शुरू किया अपहरण
गिरोह चलाने के लिए हथियारों की जरूरत थी इसलिए मलखान सिंह ने पहले छोटे-मोटे अपहरण किए और जो पैसा फिरौती की रकम से मिला उस पैसे से हथियार खरीदना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे मलखान सिंह के गिरोह में सदस्यों की संख्या बढ़ती गई. 70 के दशक में मलखान सिंह का गिरोह इतना बड़ा हो गया कि उसमें तकरीबन 100 सदस्य शामिल हो गए. उन दिनों मलखान सिंह का गिरोह चंबल में सबसे बड़ा गिरोह हुआ करता था.
महिलाओं की हमेंशा से इज्जत की और उसे सभी डकैतों के लिए बनाया नियम
मलखान सिंह महिलाओं की बहुत इज्जत किया करते थे. उन्होंने इसके लिए चंबल के बीहड़ों में एक फरमान भी जारी किया कि हर कोई महिलाओं की इज्जत करेगा और महिलाओं के साथ रेप करने वाले को चौराहे पर गोली मार दी जाएगी. मलखान सिंह के इस ऐलान का बहुत असर हुआ और ग्वालियर चंबल के जिलों में रेप की घटनाएं लगभग ना के बराबर रह गई. मलखान सिंह खुद किसी महिला के सामने आ जाने पर उनके पैर छूकर उन्हें सम्मान दिया करते हैं. मलखान सिंह का यह व्यवहार देखकर गिरोह के अन्य सदस्य भी महिलाओं को सम्मान देने लगे.
मलखान ने की बदला लेने की कोशिश
मलखान सिंह ने इस दौरान अपने दुश्मन पर भी हमला किया. मलखान सिंह ने बिलाव गांव में घुसकर कैलाश नारायण पंडित पर गोलियां दागी. गोली लगने के बावजूद कैलाश नारायण पंडित की जान बच गई लेकिन उनके साथ में मौजूद अन्य ग्रामीण की मौत हो गई. मलखान सिंह का बदला पूरा नहीं हुआ तो मलखान सिंह बीहड़ में अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गया. मलखान सिंह पर तकरीबन 1 सैकड़ा मामले मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के थानों में दर्ज हुए, इनमें 17 हत्या, 28 अपहरण और 19 हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले शामिल थे.
उस समय था मलखान पर 70 हजार का ईनाम
मलखान सिंह के आतंक से परेशान होकर पुलिस ने मलखान सिंह पर ₹70000 का इनाम घोषित कर दिया. मलखान सिंह का रसूख और उसका आतंक चंबल के बीहड़ों में बढ़ता जा रहा था लेकिन पुलिस के हाथ मलखान सिंह तक नहीं पहुंच पा रहे थे. मलखान सिंह अपने दुश्मन को भूला नहीं था और एक दिन मौका पाकर मलखान सिंह ने एक बार फिर कैलाश नारायण पंडित पर हमला किया और इस बार मलखान सिंह का बदला पूरा हो गया. मलखान सिंह ने कैलाश नारायण पंडित की हत्या कर दी. इस घटना के बाद मलखान सिंह का बदला पूरा हो गया था लेकिन गांव के मंदिर की जमीन पर अभी भी कैलाश नारायण पंडित के परिवार का कब्जा था.
तब के सीएम अर्जुन सिंह ने ये शर्त मानकर कराया था मलखान का आत्म समर्पण
तत्कालीन अर्जुन सिंह की सरकार की तरफ से मलखान सिंह के समर्पण करवाने का प्रयास किया गया. मलखान सिंह ने शर्त रखी कि मंदिर की जमीन से अधिकरण हटवाया जाए. मंदिर की जमीन से अतिक्रमण हटवा दिया गया. जिसके बाद चंबल के बीहड़ों में आने का मलखान सिंह का उद्देश्य पूरा हो गया. 15 जून 1982 को मलखान सिंह ने अपने गैंग के सदस्यों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर कर दिया. आत्मसमर्पण के बाद 6 साल मलखान सिंह जेल में रहे इसके बाद वे जेल से बाहर आ गए.
जेल से छूटकर पहले बीजेपी और अब कांग्रेस का थामा हाथ
मलखान सिंह के जेल से बाहर आने के बाद सरकार ने मलखान सिंह को गुना जिले के आरोन तहसील की सुनगयाई गांव में खेती करने के लिए जमीन दी थी. मलखान सिंह इसी गांव में आकर बस गए. मलखान सिंह ने भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार भी किया. साल 2014 के चुनाव में उन्होंने भाजपा के प्रचार अभियान से जुड़कर बीजेपी को जिताने की अपील भी की. बीते साल हुए नगरी निकाय चुनाव में मलखान सिंह की पत्नी ललिता सिंह उनके ही गांव से निर्विरोध सरपंच चुनी गई. लेकिन अब मलखान सिंह का बीजेपी से मोह भंग हो गया और उन्होंने अब कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है.
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