ज्ञानवापी पर कोर्ट के फैसले के पीछे MP के इस मंदिर की बड़ी भूमिका, आखिर क्या है पूरा मामला? जानें

जय नागड़ा

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Gyanwapi ASI Survey: उत्तर प्रदेश में ज्ञानवापी विवाद को लेकर कोर्ट फैसला सामने आया है, जिसमें कोर्ट ने ASI सर्वे की अनुमति दी है. मध्यप्रदेश में खंडवा से ज्ञानवापी का कनेक्शन देखा जा रहा है, यहां बारहवीं शताब्दी का अतिप्राचीन शिव मंदिर है. इस पर भी मुस्लिम पक्ष द्वारा याचिका लगा कर दावा किया गया था कि यहां कोई मंदिर नहीं है, तो ASI ने यहां भी कार्बन डेटिंग द्वारा सर्वे कराया गया, जिससे सारे तथ्य सामने आये थे. इसी बात की जानकारी ज्ञानवापी मामले के वकील विष्णुशंकर जैन को लगी तो वे यहां आये और यहां की रिपोर्ट मांगी, इसी रिपोर्ट को लेकर वे वाराणसी गए. इसी रिपोर्ट के आधार पर ही ज्ञानवापी पर सर्वे का फैसला आया है.

हाल ही में विवादित ज्ञानवापी मस्ज़िद में प्राचीन शिव मन्दिर होने के दावे की जांच के लिए वाराणसी कोर्ट ने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) से साइंटिफिक सर्वे कराने का आदेश दिया है. इस आदेश के पीछे बड़ा आधार खण्डवा के महादेवगढ़ मन्दिर का बना है. जिसके विवाद को सुलझाने के लिए एएसआई की रिपोर्ट को आधार माना गया था.   

ज्ञानपानी मामले में महादेव मंदिर के तथ्य रखे गए
ज्ञानवापी मामले में याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णुशंकर जैन तीन माह पूर्व खण्डवा के इस मन्दिर में आये थे, और विवाद के सम्बन्ध में न्ययालयीन कार्यवाही के तमाम दस्तावेज़ भी लेकर गए थे. उनका मानना था कि जब खण्डवा में विवादित स्थल पर मंदिर होने की पुष्टि एएसआई कर सकती है, तो ज्ञानवापी में क्यों नहीं ? इस बात को लेकर उन्होंने ट्वीट भी किया जिसके समर्थन में व्यापक प्रतिक्रिया आई.

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मंदिर को बना रखा था भैंसो का तबेला
खण्डवा के इतवारा बाज़ार स्थित महादेवगढ़ मंदिर अचानक से सुर्ख़ियों में आ गया है. दरअसल यहां बारहवीं सदी का अतिप्राचीन भव्य शिवमंदिर रहा होगा. जो कालांतर में जीर्ण -शीर्ण होकर ध्वस्त हो गया, लेकिन इसके अवशेष यहां रखे हुए थे. दरअसल बाहरवी सदी में बना मन्दिर समय के साथ अपना अस्तित्व खो चुका था. खुले आसमान के नीचे चट्टान में उत्कीर्ण शिवलिंग के नजदीक कुछ लोगो ने भैंसों का तबेला बना रखा था. जब इस शिवलिंग के रखरखाव की बात सामने आई तो स्थानीय मुस्लिम नेता मोहम्मद लियाकत पवार द्वारा हाईकोर्ट में याचिका लगा दी . याचिकाकर्ता मो लियाकत पवार द्वारा बताया गया की मंदिर के नाम पर अतिक्रमण किया जा रहा है. जिसे हटाया जाए . मामला कोर्ट में पहुंचा, तो जिला प्रशासन से जवाब मांगा गया .

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शिवलिंग के पास प्राचीन खंडित नंदी की प्रतिमा
यह मंदिर शिवलिंग के पास प्राचीन चट्टानों को काटकर जलाधारी बनी हुई है, शिवलिंग के पास प्राचीन खंडित नंदी की प्रतिमा है. नंदी के गर्दन पर मणि माला, पीठ पर और नितंबों पर घंटी के माला का अलंकरण है जो परमार काल की कलाओं का स्मरण कराता है. पुरातत्व विभाग की रिपोर्ट देख कोर्ट ने माना की यहां प्राचीन मंदिर था , जिला प्रशासन ने लिखा था की यह भूमि नगर को जल प्रदाय करने वाली कंपनी द्वारा निर्मित बाउंड्री वॉल के भीतर पश्चिम दिशा में स्थित है. इस बाउंड्री वॉल के भीतर एक शिवलिंग एवं नंदी है. जहां हिन्दू धर्मावलम्बियों के द्वारा पूजा अर्चना की जाती है. शिवलिंग अस्थाई रूप से टीन व बल्ली से अच्छादित है. तथा इस बाउन्ड्रीवॉल में किसी प्रकार का स्थाई अतिक्रमण नहीं है. तब जाकर विवाद का अंत हुआ.

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वकील के ट्वीट को हजारों लोगों ने किया था लाइक
ज्ञानवापी केस में हिंदू पक्ष की पैरवी कर रहे सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन ने सोशल मीडिया पर महादेव गढ़ मंदिर की फोटो के साथ आर्टिकल शेयर कर सवाल भी उठाया था, उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट किया था, कि जब एएसआई खंडवा में शिवलिंग की जांच कर उसके ऐतिहासिक महत्व को बता सकता है, तो ज्ञानवापी में क्यों नहीं? इस ट्वीट को हजारों लोगों ने लाइक किया और सैकड़ों लोगों ने रिट्वीट भी किया था.

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