पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या के बाद गांव में पसरा मातम! आखिरी बार बेटी से क्या हुई थी बात?

विजय कुमार

28 Nov 2023 (अपडेटेड: Nov 28 2023 5:48 AM)

मध्य प्रदेश में रेत माफियाओं के हौसले बुलंद है. यही कारण है कि वे न तो प्रशासन पर हमला करने से चूकते हैं और न ही उनकी हत्या करने के पहले सोचते है. बीते दिनों शहडोल जिले के ब्योहारी में गस्त कर रहे पटवारी की रेत माफियाओं ने टैक्टर में कुचल कर हत्या कर दी.

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MP News: मध्य प्रदेश में रेत माफियाओं के हौसले बुलंद है. यही कारण है कि वे न तो प्रशासन पर हमला करने से चूकते हैं और न ही उनकी हत्या करने के पहले सोचते है. बीते दिनों शहडोल जिले के ब्योहारी में गस्त कर रहे पटवारी की रेत माफियाओं ने टैक्टर में कुचल कर हत्या कर दी. जबकि पटवारी ने प्रशासन से पहले ही खतरे का संदेह जताया था. बावजूद इसके सुरक्षा के इंतजाम नही किए गए.इस हादसे के बाद से पटवारी प्रसन्न सिंह के परिजन सदमे में है और गांव में मातम पसरा हुआ है. तो वहीं विपक्ष और पक्ष दोनों ही इस घटना को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं.

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रीवा जिले के बरौ गांव में जन्मे प्रसन्न सिंह 16 सालो तक भारतीय सेना में रहकर देश की सरहद पर रखवाली की है. साल 2017 में रिटायर्ड होने के बाद बाद पटवारी बने थे. अनूपपुर के बाद शहडोल में तैनात होकर सोन नदी के तट पर हो रहे अवैध उत्खनन को रोकने के लिए मुस्तैद थे. शनिवार की बीती रात रेत माफियाओं को पकड़ने के लिए ब्योहरी में दविश दी जहा प्रसन्न सिंह पर हमला हो गया. माफिया ने टैक्टर से कुचल कर हत्या कर दी.

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पटवारी को पहले ही शक था हमले का

जिस इलाके में पटवारी की हत्या की गई उस इलाके में लंबे अर्से से अवैध उत्खनन हो रहा था. इस इलाके में पहले भी माफियाओं ने एक SI पर हमला किया था. खतरे को जानते हुए भी प्रशासन ने पुख्ता इंतजाम नही किए थे. नतीजन प्रसन्न सिंह की जान चली गई. प्रसन्न सिंह को पहले ही खतरे का अंदेशा था, अपने घर और दोस्तो से बताया करते थे.

गांव में पसरा मातम

पटवारी प्रसन्न सिंह की घटना के दिन दोपहर बेटी से बात हुई थी. तब प्रसन्न ने रात में आने का वायदा किया था, हादसे के बाद भी प्रशासन का अमला प्रसन्न सिंह के परिजनों की खोज खबर लेने नही पहुंचा. प्रसन्न सिंह इकलौते बेटे थे. प्रसन्न सिंह की दो बेटियां और दो जुड़वा छोटे छोटे बेटे है. अपने इकलौते बेटे को गवा चुके महेंद्र सिंह बघेल का प्रशासन से भरोसा उठ चुका है. घर और गांव वालों का एक ही कहना है कि “कितनी बड़ी बिडम्बन्न है प्रसन्न सिंह 16 साल तक सरहद में देश की सेवा के लिए तैनात रहे और दुश्मनों से बचकर सकुशल गांव लौट कर आये, लेकिन अपने देश में अपनो ने उनकी जान ले ली.

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