Mahakaleshwar Jyotirlinga: भारत की सबसे प्राचीन और धार्मिक नगरी उज्जैन में बसा है महाकाल मंदिर, जिसे हर युग में अलग-अलग नमों से जाना गया है. आवंतिका, उज्जयिनी, कनकश्रन्गा ये सब उज्जैन के ही नाम रहे हैं. उज्जैन मध्यप्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है, जहां मोक्ष दायनी शिप्रा नदी का प्रवाह होता है. जहां हर बारह वर्ष में सिंहस्थ का मेला लगता है. उज्जैन स्थित महाकाल का अद्भुत मंदिर, अपारजनों की आस्था का केन्द्र है. यहां दर्शन-पूजन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं.
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मृत्यु के देवता महाकाल
मंदिर के पुजारी महेश गुरू बताते हैं कि महाकाल प्रथम लिंग माने गए हैं, इसलिए वे मृत्यु के देवता कहलाते हैं. पंडित महेश पुजारी के अनुसार दक्षिण का स्थान काल का होता है. महाकालेश्वर को ये शिवलिंग दक्षिण मुखी है. शिवलिंग के दक्षिण मुखी होने से उनका काल पर नियंत्रण है.
महाकालेश्वर का विशेष महत्व
शिव पुराण के कोटि रुद्रसहिंता में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा का विस्तार से वर्णन किया गया है. देशभर के बारह ज्योर्तिलिंगों में उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योर्तिलिंग का अलग ही महत्व है. माना जाता है कि सृष्टि की रचना भगवान शिव के द्वारा ही की गई है. भगवान शिव से ही अन्य देवी देवताओं का सृजन हुआ. श्रावण मास में शिवजी के पूजन का विधान होने से इस पूरे माह में शिवालयों में विशेष आयोजन किए जाते हैं. महाकालेश्वर के मंदिर में पूरे सावन माह में लाखों श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर की महिमा और इतिहास काफी पुराना है.
चारों युगों से महाकाल का संबंध
पुजारी ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर आदि-अनादि काल से चला आया है. सतयुग में यहां स्वयं भगवान विराजित रहते थे. त्रैता युग में भगवान राम ने भी यहां पूजन किया. द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने भी यहां अध्ययन किया और भगवान महाकाल के दर्शन किए. कलयुग में हजारों लोग रोजाना यहां दर्शन पूजन के लिए आते हैं. महाकाल मंदिर का इतिहास चारों युगों से जुड़ा हुआ है.
बारह ज्योतिर्लिंगों में खास हैं महाकाल
पंडित महेश पुजारी ने बताया कि यहां की एक ही कहनी है, बाकी सभी किवदंतियां हैं. उन्होंने बताया कि भगवान महाकलेश्वर की उत्पत्ति दो प्रकार की है, एक प्रथम लिंग और दूसरा बारह ज्योतिर्लिंगों में तीसरा लिंग. महेश पुजारी ने राजा दुष्यंत की कथा के माध्यम से मंदिर के इतिहास का वर्णन किया. साथ ही ये भी बताया कि यहां पर जो भी व्यक्ति जप, तप, प्रार्थना और उपवास करता है उसे कई गुना फल की प्राप्ति होती है.
भस्मारती का महत्व
पंडित महेश पुजारी ने भस्म आरती का महत्व बताते हुए कहा कि ये प्रथा पूरे देश में कहीं नहीं है. केवल महाकाल मंदिर में ही भगवान को भस्म से स्नान करवाया जाता है. ये भस्म माता सती की भस्म का प्रतीकात्मक है, इसलिए भी इस अवंतिका का महत्व अधिक है.
भगवान महाकाल की प्रिय वस्तुएं
पंडित महेश पुजारी के अनुसार, भगवान शिव को जलधारा अतिप्रिय है. श्रावण मास में यदि कोई भगवान शिव को जलधारा चढ़ाता है या अभिषेक करता है, तो उसे कई गुना पुण्य प्राप्त होता है. इसके साथ ही बिल्व पत्र चढ़ाने का भी बहुत महत्व है. लोग अपनी श्रद्धा अनुसार भगवान को बिल्व पत्र चढ़ाते हैं. महेश पुजारी ने बताया कि भगवान को बिल्व पत्र, आंकड़ा, धतुरा चढ़ाया जाता है. इसके अतिरिक्त भगवान महाकाल को चंदन प्रिय है, अक्षत भी प्रिय है, जो यहां अर्पित किया जाता है.
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