Omkareshwar jyotirlinga: मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग देश का चौथा ज्योतिर्लिंग है. मान्यता है कि चारोधाम की यात्रा के बाद यदि ओंकारेश्वर में जल अर्पण न हो, तो पुण्य अधूरा रहता है. पुण्य सलिला नर्मदा के किनारे ओंकार पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग अनगढ़ आकार का है. चूंकि यहां भोलेनाथ स्वयंभू रूप में प्रकट हुए हैं. एक मान्यता यह भी है कि भोलेनाथ दिन में चाहे किसी भी लोक में विचरण करें लेकिन रात्रि विश्राम वे ओंकारेश्वर में ही करते हैं, इसलिए यहां शयन की आरती का खास महत्व है.
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श्रावण में ओंकारेश्वर में पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है. श्रावण में भोलेनाथ भक्तों के बीच स्वयं पहुंचकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं, जिससे उनकी मनोकामना पूरी होती है.
राजा मांधाता की तपस्या से प्रकृट हुए ओंकारेश्वर
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में चतुर्थ ज्योतिर्लिंग है ओंकारेश्वर. भगवान राम से चौदह पीढ़ी पूर्व राजा मान्धाता राजा हुए हैं, जिन्होंने ओंकार पर्वत पर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा -विष्णु -महेश तीनों इस शिवलिंग में प्रकट हुए हैं. प्राचीनकाल से ही यहां अखण्डदीप जल रहा है. एक ही दीपक में तीन बाती जल रही हैं, जो ब्रह्मा-विष्णु-महेश की प्रतीक हैं.
ओंकार पर्वत के ऊपर सात किलोमीटर परिक्रमा मार्ग है, वो भी ॐ आकृति में है. जिस पर्वत पर भगवान ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं, उसके चारो तरफ़ नर्मदा मैया जलहरी बनकर बह रही हैं.
भस्म आरती की तरह खास है ओंकारेश्वर की शयन आरती
पूरे बारह ज्योतिर्लिंगों में शयन आरती होती है, लेकिन ओंकारेश्वर में प्रभु का विशेष महत्त्व है जहाँ उनके विश्राम के लिए झूला-पालना और चौपड़-पासे भी बिछाए जाते हैं. यह कहा गया है कि भोलेबाबा का विश्राम ओंकारेश्वर में है. फिर तीन बजे निकलकर वो महाकालेश्वर जाते हैं, वहां स्नान करते हैं. इसलिए वहां की भस्मारती प्रसिद्ध है और ओंकारेश्वर में शयन आरती.
महानदी वाला एकमात्र ज्योतिर्लिंग
बारह ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ ओंकारेश्वर ही ऐसा तीर्थ है, जिसके तट को छूकर कोई महानदी जा रही है. जिसके दर्शन के पश्चात किसी महानदी का दर्शन होता है, वह मां नर्मदा ही है. मान्यता है कि भगवान शिव के पसीने की बून्द से ही मैकल कन्या मां नर्मदा उत्पन्न हुई हैं. अन्य नदियां उत्तर-दक्षिण या दक्षिण-उत्तर की ओर बहती हैं, जबकि नर्मदा उदय से अस्त की ओर यानि पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है.
सब नदियों में नर्मदा ही ऐसी नदी है, जिसके जितने कंकर है, वो सब शंकर हैं. नर्मदा पुराण में भी कहा गया है कि नर्मदा जल के स्पर्श होने से जो शिवलिंग बनता है उसे सीधे ले जाकर पूजा कर सकते हैं. नर्मदा जल से वे स्वयं प्रतिष्ठित हो जाते हैं.
बेहद खास है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
कई बातें हैं जो ओंकारेश्वर को अन्य ज्योतिर्लिंगों से कुछ खास बना देती है. एक तो इसका प्राकृतिक सौन्दर्य बहुत लुभाने वाला है. नर्मदा और कावेरी नदियों से चारों और से घिरे ॐ के आकार के पर्वत पर यह शिवालय स्थित है. दरअसल यही तमाम खूबियां ओंकारेश्वर की श्रद्धालुओं को खूब लुभाती हैं. यहां का नैसर्गिक सौंदर्य आंखों को ठंडक तो देता ही है. साथ ही यहां की आध्यात्मिकता मन को भी अपार शांति देती है.
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