MP अजब है! मध्य प्रदेश की ये विधानसभा सीट तय करती है किस पार्टी की बनेगी सरकार? जानें कैसे

सैयद जावेद अली

21 Oct 2023 (अपडेटेड: Oct 23 2023 7:24 AM)

MP Election 2023: मध्य प्रदेश के मंडला (Mandla) जिले की निवास विधानसभा (Niwas Vidhansabha) इन दिनों सुर्खियों में है. चर्चा इसलिए है, क्योंकि केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते (Faggan Singh Kulaste) को भाजपा ने निवास से विधायकी का टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस नेचैन सिंह वरकड़े को अपना उम्मीदवार बनाया […]

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MP Election 2023: मध्य प्रदेश के मंडला (Mandla) जिले की निवास विधानसभा (Niwas Vidhansabha) इन दिनों सुर्खियों में है. चर्चा इसलिए है, क्योंकि केंद्रीय इस्पात एवं ग्रामीण विकास राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते (Faggan Singh Kulaste) को भाजपा ने निवास से विधायकी का टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस नेचैन सिंह वरकड़े को अपना उम्मीदवार बनाया है. निवास को लेकर एक दिलचस्प आंकड़ा भी सामने आया है, जिस पर शायद कम ही लोगों ने ध्यान दिया हो. दरअसल कहा जाता है कि निवास से जिस पार्टी का विधायक बनता है, उसी पार्टी को सत्ता मिलती है.

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विधायक बदला तो 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस

निवास विधानसभा के चुनाव परिणाम यह बताते हैं कि अब तो जिस भी दल का विधायक बना है, प्रदेश में उसी दल की सरकार भी बनी है. यदि हम हाल के दिनों की ही बात करे तो जब लगातार 3 बार से भाजपा के रामप्यारे कुलस्ते विधायक बन रहे थे तो सरकार भी भाजपा की बन रही थी. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के राम प्यारे कुलस्ते को कांग्रेस के डॉ. अशोक मर्सकोले ने मात दी, तो कांग्रेस के लिए 15 साल का सूखा खत्म हुआ और सरकार भी कांग्रेस की बन गई. यह अलग बात है कि कुछ महीने बाद सरकार किन्ही कारणों से गिर गई, फिर भाजपा सत्ता पर काबिज हो गई.

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1977 से चला आ रहा ऐसा

निवास विधानसभा की राजनीति में बारीकी से नज़र रखने वाले भाजपा नेता वीरेंद्र नामदेव बताते हैं कि यदि 1977 से चुनाव परिणाम में नज़र डाले तो यह स्पष्ट हो जाता है कि निवास विधानसभा में जिस पार्टी का विधायक रहा है प्रदेश में सरकार भी उसी की रही है. 1977 में जनता पार्टी के रूप सिंह सैयाम इस सीट से जीते और जनता पार्टी ने प्रदेश में सरकार भी बनाई और कैलाश जोशी मुख्यमंत्री बने. 1980 में कांग्रेस ने वापसी की और निवास से दलपत सिंह उइके जीतकर विधायक बने. इस बार कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार बनाई और अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री बने. 1985 में कांग्रेस के दयाल सिंह तुमराची निवास से विधायक बने और फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी.

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जब उमा भारती बनी मुख्यमंत्री

1990 में भाजपा से फग्गन सिंह कुलस्ते निवास से विधायक बने और प्रदेश में भाजपा की सरकार सुंदर लाल पटवा के नेतृत्व में बनी. 1993 कांग्रेस पार्टी के दयाल सिंह तुमराची फिर निवास निवास के विधायक बने और इस बार फिर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने. 1998 में सुरता सिंह मरावी कांग्रेस की टिकट पर निवास से जीते और प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस फिर सरकार बनाने में कामयाब रही. 2003 में हुए विधानसभा चुनाव भाजपा ने उमा भारती के नेतृत्व में लड़ा और जीती. इस बार राम प्यारे कुलस्ते निवास से भाजपा के विधायक बने और उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं. बाद में किन्ही कारणवश उमा भारती की जगह बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने. बाबू लाल गौर के बाद शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश में मुख्यमंत्री की कमान संभाली.

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तीन बार लगातार जीती सीट

2008 के चुनाव में भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को अपना मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया. इस चुनाव में भाजपा ने शानदार वापसी की. इस बार फिर निवास से भाजपा के विधायक रामप्यारे कुलस्ते ही रहे. राम प्यारे कुलस्ते वर्ष 2013 में फिर तीसरी बार निवास के विधायक बने और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री. वर्ष 2008 में भाजपा के रामप्यारे कुलस्ते को कांग्रेस के डॉ. अशोक मर्सकोले ने मात दी. 15 साल बाद निवास में कांग्रेस का विधायक बना और प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस का मुख्यमंत्री. हालांकि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार उनके विधायकों द्वारा साथ छोड़ देने में आकर गिर गई और फिर शिवराज सिंह चौहान चौथी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए.

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इस बार क्या होगा परिणाम?

निवास को जिला बनाने के लिए लम्बे समय से संघर्ष कर रहे “निवास जिला बनाओ संघर्ष समिति” से संयोजक प्रदीप जैन कहते हैं कि यह महज संयोग नहीं, बल्कि तथ्य है. निवास की जनता ने जिस दल को अपना समर्थन व आशीर्वाद देकर उसका विधायक बनाया है, उसी दल की सरकार प्रदेश में बनी है. यह केवल इतिहास नहीं होगा, बल्कि फिर हक़ीक़त होगा और निवास से जिस दल का विधायक चुना जायेगा उसी दल की सरकार भोपाल में बैठेगी. हालांकि इसे सिर्फ इत्तेफाक भी कहा जा सकता है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मिथक इस बार के विधानसभा चुनाव में भी कायम रहता है या टूटता है?

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