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मध्यप्रदेश में भी सामने आया NEET जैसा फर्जीवाड़ा, डी.एल.एड कॉलेजों के फ्रॉड ने MP के छात्रों का हक मारा

अभिषेक शर्मा

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D.El.Ed colleges fraud
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D.El.Ed colleges fraud: NTA द्वारा आयोजित NEET परीक्षा में हुए फर्जीवाड़े की चर्चा इस समय पूरे देश में हो रही है. अब NEET फर्जीवाड़े जैसा ही एक मामला मध्यप्रदेश में भी सामने आ रहा है. यहां डी.एल.एड कॉलेजों के फ्रॉड ने बड़े पैमाने पर मध्यप्रदेश के छात्रों का हक मार दिया. यह बात कोई और नहीं बल्कि मध्यप्रदेश का राज्य शिक्षा केंद्र स्वयं बोल रहा है लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई है.

राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले नीट मामले के फर्जीवाड़े पर प्रेस कांफ्रेंस कर कहा था कि इस तरह के पेपर लीक और कॉलेजों के फर्जीवाड़े का केंद्रीय सेंटर मध्यप्रदेश होता था, जहां पर व्यापमं जैसा बड़ा स्कैम सामने आया था और कई लोगों की जान चली गई थी और अब यही स्कैम अलग-अलग रूप में पूरे देश में फैल रहा है. ऐसे में एक बार फिर से डी.एल.एड कॉलेजों के फ्रॉड ने पूरे देश का ध्यान मध्यप्रदेश की ओर खींचा है.

राज्य शिक्षा केंद्र ने 98 डिफॉल्टर डी.एल.एड कॉलेजों की सूची जारी कर बताया था कि ये वे कॉलेज हैं जिन्होंने 2024-25 सत्र के लिए मध्यप्रदेश के एक भी छात्र को एडमिशन नहीं दिया है. पहले चरण की काउंसिलिंग के बाद 98 कॉलेजों में मध्यप्रदेश के छात्रों की संख्या जीरो है. नोटिस में राज्य शिक्षा केंद्र ने यह टिप्पणी भी की है कि मध्यप्रदेश के छात्रों को एडमिशन न देकर ये कॉलेज मध्यप्रदेश के मेधावी छात्रों के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं.

पहले जानें क्या है डी.एल.एड कॉलेजों का फर्जीवाड़ा

-दरअसल डी.एल.एड कॉलेज संचालक लंबे समय से इस फर्जीवाड़े को मध्यप्रदेश में चला रहे हैं, जिसके तहत वे मध्यप्रदेश के छात्रों को एडमिशन नहीं देते हैं और दलालों के माध्यम से कॉलेजों की सीटों पर राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड सहित अन्य राज्यों के छात्रों को एडमिशन देते हैं. इसके पीछे कमाई का बड़ा गणित है.

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- यदि मध्यप्रदेश के छात्रों को एडमिशन देंगे तो उनको सरकारी फीस जो 30 से 35 हजार रुपए प्रति वर्ष है, उस पर एडमिशन देना होगा, जबकि दूसरे राज्यों के छात्रों को दलालों के माध्यम से एडमिशन देकर उनसे एक लाख रुपए से लेकर डेढ़ लाख रुपए प्रति वर्ष तक की फीस वसूल की जाती है. यह कोर्स दो साल का होता है तो इस प्रकार दो साल के लिए प्रति छात्र 3 लाख रुपए तक की वसूली कॉलेजों द्वारा की जाती है. मोटी फीस के ऐवज में कॉलेजों द्वारा छात्रों को नियमित कॉलेज आने से छूट रहती है और सिर्फ परीक्षा के वक्त ही उन्हें बुलाया जाता है.

- इस पूरे फर्जीवाड़े को दलालों, नकल माफिया, डी.एल.एड कॉलेज संचालक, एमपी बोर्ड व राज्य शिक्षा केंद्र के अधिकारियों की मिलीभगत से अंजाम दिया जाता है. लेकिन इस बार एनएसयूआई द्वारा शिकायत करने के बाद राज्य शिक्षा केंद्र ने कॉलेजों को नोटिस तो दिया लेकिन उसके बाद कार्रवाई के नाम पर शांत बैठ गए.

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नोटिस के बाद सभी कॉलेजों ने दिया एक जैसा जवाब

इस पूरे फर्जीवाड़े में दिलचस्प बात ये निकलकर सामने आई कि जब राज्य शिक्षा केंद्र ने सभी 98 कॉलेजों को नोटिस दिया तो लगभग सभी कॉलेजों ने एक जैसा जवाब लिखकर राज्य शिक्षा केंद्र को भेजा है, जिसमें कहा गया है कि पहले चरण की काउंसिलिंग के बाद मध्यप्रदेश के जिन छात्रों को कॉलेज एलॉट किए गए, वे एडमिशन लेने ही नहीं आए. सभी कॉलेजों ने यही जवाब राज्य शिक्षा केंद्र को भेजा लेकिन राज्य शिक्षा केंद्र इस जवाब को देखने के बाद भी जाग नहीं पाया या जानबूझकर आंखे बंद करके बैठ गया.

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ये है डिफॉल्टर कॉलेजों की सूची

दूसरे राज्यों में डी.एल.एड की मांग इतनी अधिक क्यों?

डिप्लोमा इन एजूकेशन और बैचलर डिग्री इन एजूकेशन की डिमांड मध्यप्रदेश में जितनी है, उससे कहीं अधिक उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों में हैं. इन राज्यों में सरकारी नौकरी के नाम पर सबसे अधिक वैकेंसी शिक्षा विभाग में ही निकलती है और इन राज्यों में शिक्षा विभाग द्वारा अपने शिक्षकों को वेतन भी मध्यप्रदेश की तुलना में अधिक दिया जाता है. सरकारी नौकरी की चाह में दूसरे राज्यों के छात्र मध्यप्रदेश के डी.एल.एड कॉलेजों का रुख करते हैं और दलालों के माध्यम से पहले ही सीट बुक कर लेते हैं. काउंसिलिंग की सिर्फ औपचारिकता होती है और उसके बाद एक लाख से डेढ़ लाख रुपए सालाना फीस पर दूसरे राज्यों के छात्रों द्वारा मध्यप्रदेश के डी.एल.एड कॉलेजों में एडमिशन ले लिए जाते हैं.

दर-दर की ठोकर खा रहे एमपी के छात्र, टूट रहा शिक्षक बनने का सपना

वहीं मध्यप्रदेश में शिक्षक बनने का सपना लिए छात्र दर-दर की ठोकर खा रहे हैं. अव्वल तो उनको डी.एल.एड जैसा कोर्स करने के लिए अपने ही राज्य में कॉलेज मिलता नहीं, जैसे-तैसे वे एडमिशन ले भी लें तो मध्यप्रदेश सरकार का स्कूल शिक्षा मंत्रालय शिक्षक भर्ती को लेकर सुप्त अवस्था में बैठा हुआ है, जबकि हजारों की संख्या में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं लेकिन सरकार में मध्यप्रदेश के ही छात्रों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है.

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